Thursday 14 November 2019

दोहराते हुए कि बाकी सब ठीक है।

सूरज डूबते ही रास्तों के किनारे बिखरे पड़े इन फूलों का महकना शुरू हो जाता है। ये धुंधले होते दिनों की महक है। मैं इस महक को महसूस करने की कोशिश करना चाह रहा हूँ पर नहीं कर पा रहा हूँ। धीरे-धीरे ऐसे लग रहा है जैसे कुछ भी महसूस होना बंद हो गया है। आए हुए सारे फोन आए हुए रह गए हैं। जो एकाध वापिस लौटे वो बुरी खबरों से भरे हुए हैं। खबरें फसलों के बर्बाद हो जाने की, खबरें आत्महत्याओं की, खबरें शादियों के लिए खुश होते लोगों की। खबरें उन लोगों की भी हैं जो होड़ में बने रहने के लिए कुछ भी किए जा रहे हैं। अनैतिक जीवन जीए जा रहे हैं। क्या सच में वह जीवन अनैतिक है।  जिसे हमनें अपने लिए अनैतिक करार देकर नकार दिया असल में इस दुनिया में नैतिक जीवन वही है। वह कितनी खराब बात थी जो पिछली किसी एक शाम कही गई। आपके बारे में किसी से कोई कुछ भी बात कह सकता है। वो बात जो आपने कभी की/कही नहीं होगी। और आप कुछ कर भी नहीं सकते इस बारे में। सिवाय की किसी दिन घूमती-फिरती वही कोई बात आपके कानों में पड़ेगी और आप चौंककर पूछेंगे, हैं! ये कब हुआ। सब चीज़ों को याद करने के बाद महसूस करने की तमाम जाया कोशिशों के बाद रेलिंग पर हाथ टिकाकर धुंध में छिपी इमारतों पर उड़ते हुए कबूतरों को देख रहा हूँ। शहर से तमाम शिकायतों को सोच रहा हूँ। यह सब सोचते हुए चाहता हूँ कि नीचे उतरकर कहीं हो आऊं। पर जगहें जैसे रोक रही हैं। जिन जगहों पर एक उम्र बीती हो वो जगहें खुद से आपके लिए रास्ते बंद कर देती हैं, क्या यह संभव होता होगा। हम सब कहीं भी होकर कहीं ना कहीं से बहुत दूर हैं। इतना दूर की वहाँ पहुँच पाना संभव ही नहीं है। हम जितना ऊपर जा रहे हैं उतना ही पीछे हमसे हमें सुनने वाले छूटते जा रहे हैं। जो कहा जाना था उसे उसे घोटकर पी लिया गया होगा अपने ही अंदर। इसे पीने से किसी का भी गला नीला भी नहीं पड़ता होगा ना। कोई पूछे तो कह देना बाकी सब ठीक है। जीवन कितना सुँदर है। एक-एक कर तमाम शिकायतें गिनवा देना। पीछे किसी कोने से आपका अपना जीवन दूर होता हुआ हँस देगा आपपर। दोहराते हुए कि बाकी सब ठीक है।