Saturday, 26 March 2016

बरगद मैं बड़ा हो गया...

बहुत सारी चिड़ियाएं आकर बरगद पर बैठ गई। वह छत पर बैठे बैठे देर तक उन्हें देखता रहा। फिर नीचे उतरा। बाहर लकड़ियों के ढेर में से एक लकड़ी उठाई, एक तगारी ली, खूंटी पर टंगी रस्सी ली और थोड़े से बाजरी के दाने लेकर वापिस छत पर आ गया।
उसने बरगद के पास जमीन पर दाने फैलाए, लकड़ी को रस्सी से बांधा और तगारी को दानों पर लकड़ी से तिरछा लगा दिया। वह रस्सी पकड़कर मुंडेर के पीछे छिप गया। थोड़ी देर बाद दो तीन चिड़ियाएं आई और दाने चुगने लगी। उसने रस्सी खींच दी। वह भागकर गया और थोड़ी सी जगह बनाकर तगारी के नीचे हाथ घुमाया और हाथ में एक चिड़िया थी। बाकि वाली चिड़ियाओं के लिए तगारी और जमीन के बीच का फासला उड़ने के लिए पर्याप्त समय दे गया था।
उस चिड़िया को पकड़कर वह नीचे आ गया। पहले ख़याल आया कि कुछ दिन पहले उसने एक रंगी हुई चिड़िया देखी थी मुंडेर पर उसकी तरह रंग दूं लेकिन फिर मन बदल गया। वह नन्ही अंगुलियों से उसकी पीठ सहलाने लगा कितनी प्यारी चिड़िया है। उसने रोटी के छोटे छोटे टुकड़े करके हथेली पर उसके आगे रखे। फिर कुछ बाजरे के दाने और कटोरी मे पानी भरकर रखा।
उसे लगा कि वह उसे अपनी दोस्त बना लेगा। वह कहीं भी जाएगा तो फुर्र फुर्र करती उसके कंधे और सिर पर बैठकर उड़ती रहेगी। काफी देर तक वह उसे टुकूर टुकूर देखता रहा। उसे लगा कि वह रो रही है। उसे अपना रोना याद आ गया।
वह वापिस उसे लेकर छत पर गया। उसकी पीठ पर हाथ फेरा और बरगद के एक पत्ते पर बैठा दिया। हाथ हटते ही वह उड़ गई।


Tuesday, 22 September 2015

चल कि अंधेरा घना हो गया...

दिनभर के शरीर दर्द से शाम को कुछ आराम मिला तो सोचा बाहर निकलकर कुछ देर टहल आना चाहिए दिनभर रूम में पङे-पङे बोर हो चुका था पर बाहर तेज धूप देखकर मानस बदल दिया, चलो दिन ठंडा होने तक अखबार ही देख लिया जाये। अखबार उठाते ही सेकंड लीड की तस्वीर चीख पङी। बिहार चुनाव की तस्वीर थी, कुछ लोग हंगामा कर रहे एक व्यक्ति को प्रेस कांफ्रेस से घसीटकर खदेङ रहे थे। उस व्यक्ति का कहना है कि वह पार्टी पर 40 लाख रुपये खर्च कर चुका है फिर भी उसका टिकट काट दिया गया। पैसा, टिकट, चुनाव, वादे, जुमले, जनता, हंगामा...कुछ भी समझ में नहीं आता कि रोया जाये, गम्भीर हूआ जाये या हंसा जाये शायद हंसना ही ज्यादा सही रहेगा क्यों कि रोने, गम्भीर होने और लङने का हश्र तो सभी देख ही रहे है और सामने रखी तहलका(हिन्दी) के 15 सितम्बर के अंक की कवर स्टोरी चिल्ला चिल्लाकर इस बात की गवाही दे रही थी।
अखबार के पहले पन्ने पर ही अगली खबर थी ‘कार में छात्रा से सामूहिक बलात्कार (जबरन पिलाई शराब, एमएमएस फेसबुक पर डालने की दी धमकी)’। सिर पहले ही बुखार से भारी हो रहा था अखबार फेंक दिया नहीं सहन हो रहा था। पहले पन्ने पर सब ऐसी ही खबरें थी कलह, आरक्षण, घोटाला, बलात्कार, हत्या। क्या-क्या हो रहा है आस पास कुछ भी समझ में नहीं आता।
सूरज शहर की दीवारों में खो चुका था बिखरे बालों को समेटकर जेएनयू की तरफ निकल गया। कुछ देर टहलने के बाद शरीर जवाब देने लगा तो एक पेङ से सिर टिकाकर बैठ गया, टहनी पर बैठे मोर ने मेरी आहट सुनी तो नीचे उतरकर पास ही एक झाङी के पास जाकर पसर गया। सामने देखा तो लगा कि पेङ और मोर मुझसे कुछ कहने की कोशिश कर रहे है और कानों में ‘Patrichor- The Smell After Rain’ शब्द गुंजायमान होने लगा। अरे हां थोङी देर पहले ही यह शब्द कहीं पढा था। लगा पेङ कह रहा है तुम्हे शामें और बारिश के बाद की मिट्टी सनी जो खुशबू आती है बेहद पसंद है ना आज तो तुम्हारे रेगिस्तान में खूब बारिश हुई है क्या खूबसूरत और शांत होगी आज की शाम। 
एक लम्बी आह भरकर मेरा मन उस रेगिस्तानी पहाङी पर पहूंच गया जहां अक्सर मैं शांत शाम के तारों भरी रात में बदलने तक बैठा रहता था। मानसून पश्चात की बारिश के बाद उस जगह का माहौल बहुत ही सुहावना हो जाता है। हल्की हल्की मधूर हवा, पानी से भीगकर खिल उठे आक के पत्ते और फूल, आस-पास छोटे गड्ढों में भरा कांच सा पानी, किनारे पर पानी में भीगकर अठखेलियां करते पंछी, टप टप गिरती बूंदों की आवाजें, पास से गुजरते बकरियों के झुण्ड से आती घंटी की आवाज और पानी में चाँद की परछाई। 
अचानक तेज स्पीड से आगे से गुजरी बाइक ने तंद्रा तोङ दी भीगे खूबसूरत रेगिस्तान से लौटकर सामने देखा तो अंधेरा हो गया था सङक किनारे लाइटें जल चुकी थी, उठकर चलने लगा तो पीछे से मोर के पँख फङफङाकर उङने की आवाज सुनाई दी शायद वही मोर था। कुछ वक्त के इस अपनी माटी की और लौट जाने के सफर से लगा कि दिनभर के बुखार और थकान को रेगिस्तान में बारिश बाद की खुशबू की यादें अपने साथ उङा ले गई।