एक दुनिया है जो छूट गई है
एक दुनिया है जो पास है।
एक शहर है
खुद को नहीं है जिसका ठिकाना
जो रंगों से भरा है जीवन के
लेकिन
उतना ही बेरंग।
रेत है
रेत पर चलते जीव है
पैरों के निशान है
दुनिया के लिए
कलाकृतियों से।
आसमान है
आसमान की दुनिया है
अथाह है एक नीलापन।
यह शहर
या कहें कि दुनिया
इसके पास तमाम चीज़ें हैं
राजशाही, राजनीति, साहित्य, कला
संस्कृति, संगीत, जीवन और जिजीविषा
जो नहीं है वो है,
वही जिसे आप चाहकर भी नहीं चाहते!
सोचना ये तमाम
सब्जेक्टिव है या ऑब्जेक्टिव
कि एक लाश पड़ी है
फिसली हुई लाश
जो फिसल कर गिर जाती है
फ़र्क़ पड़ता नहीं है किसी को।
एक दिन पता चलता है
आप थे जो थे
लेकिन
अब आप नहीं है
रोना है, विलाप है
याद है
कहें कि
मेमोरीज़।
फिर लौट आए दूर
जो था
उसके पास
एक दुनिया
जिसका होना रोमांटिसिज़्म
कि सब सुंदर
जो दीखता है
रेत हो जाती है हरियाली
रेगिस्तान हो जाता है पानी
कि महल ही महल
जो नहीं दीखता
परमाणु से फूट पड़ी धरती
सांस को तरसता गला।
संदर्भ क्या तमाम बातों का?
संदर्भ
संदर्भ
सोचो क्या संदर्भ,
कि
सब छूट जाना होते हुए भी
न होना
होते हुए भी
घटना, न घटने को।
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