मैं जश्ने रेख़्ता में था। शाम सात बजे के आसपास घर से फोन आया कि कहाँ हो दिल्ली में दंगे हो रहे हैं, तुम ठीक हो। फोन काटने के थोड़ी देर बाद आसपास के लोगों को घटना के बारे में फोन आने शुरू हो गए। बताया गया कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया में छात्रों को पुलिस ने कैम्पस में घुसकर पीट दिया है। खबरों में था कि प्रोटेस्ट कर रहे लोगों ने बसें जला दी। हम वहाँ से जामिया के लिए निकले। महारानी बाग की तरफ जाम लगा था। ऑटो वाले ने लगभग दो किलोमीटर पहले उतार दिया कि आगे भयंकर जाम है मैं आगे नहीं चल सकता। हम उतरकर पैदल ही आगे बढ़ गए। दो बसें, एक कार जले हुए थे। एक बस में तोड़-फोड़ की हुई थी।
अभी इस जगह से जामिया का कैम्पस लगभग एक किलोमीटर से ज्यादा दूर था। चौराहे पर बैनर व जूत्ते बिखरे हुए थे चारों ओर। हम कैम्पस पहुँचे तो पूरी सड़क पुलिस वालों से भरी हुई थी। जामिया के आसपास हमेशा खुली रहने वाली सारी दुकाने इस वक़्त बंद थी। अंदर एक दम सन्नाटा पसरा था। कैम्पस में जगह-जगह काँच टूटे हुए बिखरे थे। वहाँ घूम रहे गार्ड्स ने कहा कि आप यहाँ से चले जाइये यहाँ पर कोई नहीं है अभी, हम घायल छात्रों को ढूंढ़कर अस्पताल पहुँचा रहे हैं। हम वहाँ से बाहर निकले तो बाहर सड़क के एक तरफ बहुत सारी गिरी हुई मोटर साइकिलों थीं जिनके काँच टूटे हुए थे। बाद में छात्रों ने बताया की उनकी गाड़ियों के काँच पुलिस ने यहाँ से गुजरते हुए तोड़ दिये।
वहाँ से हम लाइब्रेरी पहुँचे जहाँ परिजन व प्रोफेसर घायल छात्रों को ढूंढ रहे थे। कुछ छात्रों के बदहवास परिज़न इधर-उधर घूमते हुए बच्चों को ढूंढने के लिए मदद की गुहार लगा रहे थे। एक महिला लाइब्रेरी के बाहर अपने बच्चे का नाम पुकार रही थी। उसका कहना था कि अंतिम फोन आया तब उसने कहा कि पुलिस लाइब्रेरी के अंदर घुसकर मार रही है तथा वह आसपास किसी गड्ढे में छुपा हुआ है। एक प्रोफेसर ने बताया कि आज जो प्रोटेस्ट हुआ उसका जामिया से कोई लेना देना नहीं था। वह बाहर के लोगों का प्रोटेस्ट था। पुलिस उस प्रोटेस्ट को तीतर-बीतर करते हुए कैम्पस में घुस आई और लाइब्रेरी में पढ़ते हुए लोगों को बेरहमी से पीटा गया।
वहाँ से हम हॉस्टल की तरफ़ गए तो छात्र डरे हुए थे। कुछ छात्र अपना बैग लेकर बाहर की ओर जा रहे थे। हमारे पूछने पर उन्होंने कहा कि हमें बताया गया है यहाँ माहौल खराब होने वाला है हम अपने दोस्तों के रूम पर जा रहे है। गेट के ही बाहर चीफ प्रॉक्टर मिले। उनका कहना था कि पुलिस विश्वविद्यालय प्रशासन की बिना अनुमति के कैम्पस में घुसी। लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को मारा, छात्र जब खुद को बचाने के लिए मस्ज़िद में जाकर छिपे तो वहाँ घुसकर मारा, गार्डस व स्टाफ मेम्बर्स को मारा। कैम्पस के अंदर से कोई भी पत्थरबाज़ी नहीं हुई। उन्होंने कहा कि हम पुलिस के ख़िलाफ़ एफआईआर करवाएंगे।
सामने से सड़क पर पुलिस का बहुत बड़ा जत्था आ रहा था। हम उसे रिकॉर्ड करने लगे अचानक कुछ पुलिसवाले आए और मेरे हाथ से फोन छीन लिया। हाथापाई करने लगे। मैंने कहा पत्रकार हूँ तो वो फोन लेकर चलने लगे। थोड़ी देर बाद एक दूसरे पुलिस वाले ने अपने साथियों से फोन लौटाने व हमें छोड़ने को कहा। मैंने फोन देखा तो वीडियो डिलीट कर दिया गया था उसमें से। आपको फिर से याद दिला दूं कि यह सब देश की राजधानी दिल्ली की एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के आगे हो रहा है।
वहाँ मौजूद छात्र गुस्से में थे। डरे हुए भी थे। उनका कहना था कि बसें पुलिसवालों ने खुद जलाई हैं। वहीं कुछ लोग कह रहे थे कि बसें बाहर के जो लोग प्रदर्शन कर रहे थे उन्होंने जलाई। उनका कहना था कि कैम्पस में जाकर देखिए कहाँ पत्थर हैं। छात्र लाइब्रेरी में थे, डिपार्टमेंट्स में थे, हॉस्टलस में थे जहाँ पुलिस ने घुसकर उन्हें पीटा। सौ से ज़्यादा छात्र घायल हैं। 50 से ज़्यादा छात्रों को पुलिस द्वारा पकड़ा गया है।
वहाँ से पता चला कि घायल छात्रों को होली फैमिली अस्पताल ले गए हैं। बारह बजे हम वहाँ पहुँचे तो अस्पताल के गेट बंद कर दिए गए थे। किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जा रहा था। अंदर और बाहर पुलिस की भीड़ थी। लगातार पुलिस की गाड़ियाँ अंदर जा रही थी। बाहर परिजन गिड़गिड़ा रहे थे कि उनके बच्चे गायब हैं उन्हें अंदर जाकर देखने दिया जाए। गार्डस कह रहे थे कि कोई अंदर नहीं जा सकता। और यहाँ कोई बच्चे नहीं हैं जामिया के।
पता चला कि कुछ बच्चे न्यू फ़्रेंड्स कॉलेनी व कालकाजी थाने में हैं। रात के एक बज रहे हैं। हम न्यू फ़्रेंड्स कॉलोनी थाने पहुँचे। थाने का गेट बंद था। बाहर कुछ पत्रकार, एक्टिविस्ट, वकील व छात्रों के परिजन खड़े थे। किसी को भी नहीं पता है कि घायल व पुलिस द्वारा उठाये गए छात्र कहाँ पर है। बताया गया कि यहाँ जो छात्र थे उन्हें एम्स ट्रोमा सेंटर ले जाया गया है। वहाँ से लोग कालकाजी थाने व एम्स की तरफ निकल गए। यहाँ हर्ष मंदर, योगेन्द्र यादव, उमर ख़ालिद तथा कई अन्य लोग थे जिनको देखकर पुलिस का डर थोड़ा कम हुआ।
कालकाजी थाने के बाहर भी लोग इकट्ठा थे। छात्रों के परिजन गेट खुलवाने को लेकर पुलिस से उलझ रहे थे। उनका कहना था कि पुलिस घायल छात्रों को अस्पताल ले जाने के बजाय थाने में रखे हुए है। परेशान परिजनों को वहाँ मौजूद वकील व एक्टिविस्ट दिलासा दे रहे थे। छात्रों को थाने से निकालकर हॉस्पीटल ले जाने के लिए कोशिश कर रहे थे।
तीन बजे हम एम्स के ट्रोमा सेंटर पहुँचे। मरिजों के परिजन इधर-उधर सोए हुए दिख रह थे। गार्डस ने अंदर जाने से रोक दिया और कहा कि सामने खड़े पुलिस वालों से पूछो। पुलिस वालों ने भी मना कर दिया । वहाँ खड़े तीन पत्रकार अंदर जाकर छात्रों का हाल जानने की कोशिश कर रहे थे। कुछ परिजन भी पहुँचे। बताया गया कि पुलिस छात्रों से कहलवाना चाहती है कि उन्हें जामिया के ही लोगों ने मारा है। पुलिस ने उन्हें बचाया है। एक छात्र के पिता ने बताया कि लाइब्रेरी में पढ़ रहे उनके बेटे को मारा गया। उसकी एक आँख डेमेज हो गई है। उँगली फ़्रैक्चर है। बताते हुए वो फफककर रोने लगे। कहा कि बेटे के किसी साथी ने फोन करके उनको सूचना दी। यहाँ अंदर सोलह छात्र एडमिट बताए जा रहे हैं।
चार बजे मैं अपने घर पहुँचा। छह बज गए हैं लेकिन सो नहीं पा रहा। चेहरे के सामने फफककर रोते उस छात्र के पिता का चेहरा घूम रहा है। सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाना, बसों को जलाना ग़लत हो सकता है। लेकिन बेक़सूर लाइब्रेरी में पढ़ते हुए छात्रों पर किये गए हमले के भी अगर आप पक्ष में खड़े हैं तो आप ग़लत हैं। ये आपके ही बच्चों पर उस सरकार का हमला है जिसे आपने चुना है। जिसे आप अपनी जेब से पैसा देते हैं।पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए होती है या डराने के लिए? शायद डराने के लिए ही होती है इसलिए बचपन में हर बात में पुलिस का डर दिखाकर बात मनवाई जाती थी। एक कानून जो देश को धार्मिक तौर पर बांटने वाला है, जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है उसका विरोध कर रहे छात्रों को दबाने के लिए जामिया व एएमयू में पुलिस ने जो बर्बरता दिखाई है वह बहुत ही भयावह है। एक दिन आपका भी नम्बर आएगा।