यार ये मई का महिना है
दिन तपते हैं ठरती हैं रातें
सुबह छत पर मोर नाचते हैं
दोपहर जाळों के नीचे होती हैं गायें
शाम को उत्तर से उठता है बवंडर।
यार ये मई का महिना है
क्यों कहते निर्मम महिना है
लू और तपत से जलाने वाला
पसीने से तरबतर कर देने वाला
उमस और आंधियों का महिना।
यार ये मई का महिना है
मैंने खिड़की में पाँव रखे थे
बरगद को छूकर आती हवा
जाळों पर उगे लाल-पीले पीलू
खेजड़ियों से झड़ते खोखे
टूळों पर लटकते पाके।
यार ये मई का महिना है
ये मेरा महिना है
मैंने खुद को जलाने की चीजें चुनी नहीं
ना ही पत्थर चुने और ना ही वायरों का हवा-पानी।
यार ये मई का महिना है
कपड़े सिली बोतल का पानी पीना है
डाखणी खिड़की की हवा में सोना है
शाम को ठाढकी रेत में फिरना है
ढळती रात में कांगसिया बजाना है।
यार ये मई का महिना है
बोला ना मेरा महिना है...
दिन तपते हैं ठरती हैं रातें
सुबह छत पर मोर नाचते हैं
दोपहर जाळों के नीचे होती हैं गायें
शाम को उत्तर से उठता है बवंडर।
यार ये मई का महिना है
क्यों कहते निर्मम महिना है
लू और तपत से जलाने वाला
पसीने से तरबतर कर देने वाला
उमस और आंधियों का महिना।
यार ये मई का महिना है
मैंने खिड़की में पाँव रखे थे
बरगद को छूकर आती हवा
जाळों पर उगे लाल-पीले पीलू
खेजड़ियों से झड़ते खोखे
टूळों पर लटकते पाके।
यार ये मई का महिना है
ये मेरा महिना है
मैंने खुद को जलाने की चीजें चुनी नहीं
ना ही पत्थर चुने और ना ही वायरों का हवा-पानी।
यार ये मई का महिना है
कपड़े सिली बोतल का पानी पीना है
डाखणी खिड़की की हवा में सोना है
शाम को ठाढकी रेत में फिरना है
ढळती रात में कांगसिया बजाना है।
यार ये मई का महिना है
बोला ना मेरा महिना है...
No comments:
Post a Comment