Friday 9 February 2018

मर जाने के ख़्वाब भी इतने खूबसूरत होते होंगे

वो अचानक सपने से जागा। पहली बार उसने इतना खूबसूरत सपना देखा था नींद में। मर जाने के ख़्वाब भी इतने खूबसूरत होते होंगे।⠀⠀
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उसने देखा किसी गर्म दोपहर वह अचानक इस खेजड़ी के पेड़ के नीचे सोते हुए दुनिया से गायब हो गया। मर जाने के बाद गांव और शहर को जोड़ती रेत से भरी किसी सड़क के किनारे उसकी एक मजार बनाई गई। मजार के पास एक बड़ी सी चौकी जिसपर हमेशा बिखरे रहते हैं रेगिस्तान में उगने वाले फूल। गार निपी इस चौकी के किनारों पर दीयों की रोशनी में हर दूज को चमकने लगते हैं मिट्टी पर उभरे हाथों के निशान और पीले पोतिये। हर चांदनी दूज की रात में दिनभर की थकी-हारी हवा में घुल जाती है तंदूरे और कांगसियों की आवाज़। चौकी के एक किनारे घोल घेरे में कंधे पर तिरछे ओढ़ने डाले औरतें उगेर रही हैं मीरा के भजन।⠀⠀
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उसने देखा की मज़ार के किनारे एक बहुत बड़ी झोंपड़ी बनी है। जिसकी दीवारें किताबों से भरी हैं। दूर तक घुलती जाती है पुराने पन्नों की महक। आने वाले सब लोग झोलों से किताबें निकालकर बांटते हैं प्रसाद में। मज़ार पर आने वाले मन्नत मांगने के लिए चढ़ा जाते हैं किताबें। मजार के पास बरगद और खेजड़ी के पेड़ों के झुरमुट पर फुदकती सफेद गालों वाली बुलबुलें और फाख़्ताएँ गाती रहती हैं उन किताबों में छपने से बचे रह गए गीत। पेड़ों के नीचे निक्कर पहने बच्चे बनाते रहते हैं छोटे-छोटे पत्थर चुनकर घरोन्दे और जब थक जाते हैं खेलते-खेलते तो बनाने लगते किताबों में देखकर दीवारों पर आड़ी-तिरछी रेखाएं।⠀

दूर रेत के टीलों के बीच सांझ को पतले चाँद का परदा ओढ़े बच्चों को कहानी सुना रहे हैं दो लोग। बच्चे बकरियों के गले में बाँहें डाले कहानियां सुनते हुए बीच-बीच में हंसते तो बकरियों के गले की घंटियां खिलखिलाने लगतीं। उसने कहानी सुनाने वालों के चेहरे पहचानने की कोशिश की। उसने देखा एक वो खुद ही था। वो कहानी सुना रही लड़की के चेहरे को निहार रहा था और लड़की कहानी सुनाते रुककर उसकी आंखों पर हथेलियां रखकर कह रही इधर मत देखो मेरी तरफ, ऊपर देखो ना आसमान में। ओह वो ज़िंदा था! फिर ये मज़ार किसकी थी। वो जाग गया था। उसने देखा खिड़की से तारे दिख रहे थे रोशनी से डूबे इस शहर में भी।


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